Maa Laxmi Ji Ki Quiz

Maa Laxmi Ji Ki Quiz – Test Your Knowledge about your religion

क्या आप माँ लक्ष्मी जी के भक्त हैं? या आपको बस उनके बारे में और अधिक जानने की इच्छा है। चाहे आप उनके धन, समृद्धि और विपुलता की हिंदू देवी के बारे में कुछ और जानना चाहें, इसलिए तैयार हो जाइए हमारी “माँ लक्ष्मी जी की क्विज़” के साथ ज्ञान और आध्यात्मिकता की एक रोमांचक यात्रा पर!

माँ लक्ष्मी जी की क्विज़ के साथ अपने ज्ञान का परीक्षण करें!

Maa Laxmi Ji Ki Quiz

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1. माता लक्ष्मी के पूजन के लिए शुक्रवार को किस देवी की पूजा भी की जाती है?

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2. मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। ---?--- काटि भक्ति मोहि दीजै॥

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3. माता लक्ष्मी को कौन-से गुणों से प्रदान किया जाता है?

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4. माता लक्ष्मी की उत्पत्ति कैसे हुई थी?

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5. माता लक्ष्मी को किसलिए धन, वैभव, सुख और समृद्धि की देवी कहा जाता है?

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यह क्विज़ आपके माँ लक्ष्मी जी के महत्व, पौराणिक कथाओं, प्रतीकों और रीति-रिवाज़ों के समझ पर चुनौती देने के लिए तैयार किया गया है। उनकी दिव्य गुणों से लेकर उनके संबंधित कथाओं तक, यह क्विज़ माँ लक्ष्मी जी से संबंधित विषयों के एक व्यापक संग्रह को कवर करता है। चाहे आप एक शुरुआती हों या एक विशेषज्ञ, यह क्विज़ आपको आपके ज्ञान की परीक्षा लेने और माँ लक्ष्मी जी के बारे में अपनी समझ को गहरा करने का मौका देता है।

माँ लक्ष्मी जी की अनुकूलता के रहस्यों को खोलें जब आप उनके मंदिरों, त्योहारों और उनके भक्तों के प्रथाओं पर प्रश्नों का उत्तर देते हैं। उनकी दानशीलता की रोचक कथाओं को खोजें और उनके पूजन के लिए समर्पित रीति-रिवाज़ और आचार्यों को खोजें। इस क्विज़ के माध्यम से अपनी मनोदशा को तेज़ करें और आध्यात्मिक विश्व में अवगति प्राप्त करें जब आप माँ लक्ष्मी जी की विशाल जगह को छूते हैं।

तो, अपना ज्ञान और उत्साह इकट्ठा करें और हमारे साथ “माँ लक्ष्मी जी की क्विज़” में शामिल हों! अपनी प्रतियोगिता करें, दोस्तों के साथ मुकाबला करें और इस प्रख्यात देवी के अध्यात्मिक महत्व को गहराने के लिए अपनी समझ को मजबूत करें। इस ज्ञानमयी यात्रा पर जाकर माँ लक्ष्मी जी आपको अपार आशीर्वाद दें।

Maa Laxmi Chalisha in Hindi

|| दोहा ||

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥

॥ सोरठा॥

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

॥ चौपाई ॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥

॥ श्री लक्ष्मी चालीसा ॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥

॥ दोहा॥

त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥

Maa Laxmi ji ki Aarti

श्री लक्ष्मी माता आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

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