इस पोस्ट में हम आपके लिए “गुरूवार व्रत (बृहस्पतिदेव जी) कथा क्विज़” लाए हैं। यह क्विज़ आपको गुरूवार के व्रत के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों और कथा से अवगत कराएगा। यदि आप इस व्रत को करते हैं या जानना चाहते हैं कि इसकी कथा क्या है, तो इस क्विज़ में भाग लें और अपने ज्ञान को परखें। यह एक मनोरंजक और शिक्षाप्रद क्विज़ है जो आपको धार्मिक ज्ञान का मज़ा लेने का अवसर देगा। अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और उन्हें भी इस रोमांचक क्विज़ का आनंद लेने का मौका दें!
Guruvar Vrat (Brihaspatidev Ji) Katha Quiz with certificate
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गुरूवार(Guruvar Vrat katha) कि कहानी।
बहुत समय पहले की बात है, भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था। वह अति प्रतापी एवं दानी था। वह प्रतिदिन मन्दिर में भगवद्दर्शन करने जाता था और गुरु और ब्राह्मण की सेवा भी करता था। उसके द्वार से कोई भी याचक निराश नहीं लौटता था।
वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखता (Guruvar Vrat katha)और पूजन करता था। हर दिन गरीबों की मदद करता था। परन्तु यह सब बातें उसकी रानी पसन्द नहीं करती थी, वह न व्रत करती थी और न किसी को एक भी पैसा दान रूप में देती थी। वह राजा को भी ऐसा करने से रोकती थी।
यह उस समय की बात है जब राजा शिकार खेलने वन को चले गए थे। महल में सिर्फ रानी और दासी थीं। उस समय गुरु बृहस्पति साधु का रूप
धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए। साधु ने रानी से भिक्षा मांगी तो वह करने लगी- “हे साधु महाराज! मैं इस दान-पुण्य से तंग आ गई हूं। इस काम के लिए तो मेरे पतिदेव ही बहुत हैं। अब आप ऐसी कृपा करें कि ये सारा धन नष्ट हो जाए, ताकि मैं आराम से रह सकूं।”
साधु का भेष धरे बृहस्पति (Guruvar Vrat katha) ने कहा-‘हे देवी! तुम बड़ी विचित्र हो। सन्तान और धन से कोई दुःखी नहीं होता, सभी इसे चाहते हैं। पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करता है।
अगर तुम्हारे पास धन बहुत है तो भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, ब्राह्मणों को दान दो, प्याऊ लगवाओं, धर्मशालाएं बनवाओ, कुआं-तालाब-बावड़ी-बाग-बगीचे आदि बनवाओ तथा निर्धनों की कुंआरी कन्याओं का विवाह कराओ, साथ ही यज्ञादि करो। इस प्रकार के कर्मों से आपके कुल का एवं आपका नाम लोक-परलोक में प्रसिद्ध होगा एवं तुम्हें भी स्वर्ग की प्राप्ति होगी।”
किन्तु वह मूर्ख रानी साधु की इन बातों से खुश नहीं हुई, वह बोली-“हे साधु महाराज! मुझे ऐसी सम्पत्ति की आवश्यकता नहीं जो मेरे काम न आये तथा जिसको मैं अन्य लोगों को दान दूं, जिसको रखने और सम्भालने में ही सारा समय नष्ट हो जाए।” साधु ने रानी को समझाने का बहुत प्रयास किया,
परन्तु रानी अपनी बात पर अडिग रही तब साधु ने कहा- “हे देवी! यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो जैसा मैं तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना।
बृहस्पतिवार (Guruvar Vrat katha) के दिन गोबर से घर को लीपना, अपने केशों को पीली मिट्टी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, राजा से कहना कि वह भी हजामत करवाए, भोजन में मांस-मदिरा खाना, कपड़े धोबी के यहां धुलने डालना।
इस तरह सात बृहस्पतिवार निरन्तर करने से तुम्हारा सब धन नष्ट हो जाएगा।” ऐसा कहकर साधु रूपी बृहस्पति अन्तर्ध्यान हो गए।
रानी ने साधु के कहे अनुसार ही भरपेट सात बृहस्पतिवार वैसा ही करने का विचार किया। साधु के बताए अनुसार करते हुए उसे केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसकी समस्त धन-सम्पत्ति नष्ट हो गई।
कहे अनुसार ही भरपेट भोजन के लिए भी दोनों समय परिवार तरसने लगा तथा सांसारिक भोगों से दुखी रहने लगा।
इस प्रकार के अभावग्रस्त जीवन से तंग आकर एक बार राजा रानी से कहने लगा कि हे रानी! तुम यहां पर रहो. मैं दूसरे देश को जाता हूँ, क्योंकि यहां पर मुझे सभी मनुष्य जानते हैं.
इसलिए मैं यहां कोई कार्य नहीं कर सकता। देस चोरी, परवेस भीख के समान है। ऐसा कहकर राजा परदेस चला गया। यहां जल से लकड़ी काटकर लाता है और उन्हें शहर में बेचकर जीवन यापन करने लगा।
राजा के जाने के पश्चात् इधर उसके बिना रानी और दासियां दःखी रहने लगीं, किसी दिन भोजन मिलता तो किसी दिन जल दु पीकर ही रहना पड़ता था।
एक समय रानी और दासियों को सात दिन बिना भोजन के व्यतीत हो गए. तो रानी अपनी दासी से बोली- “हे दासी! यहां समीप ही के नगर में मेरी बहन रहती है, जो बहुत धनवान है। तू इसके पास जा और वहां से पांच सेर बेझर (जी) मांगकर ले आ, जिससे कुछ समय के लिए गुजर बसर हो जायेगी।
दासी उसकी बहन के पास गई। बृहस्पतिवार (Guruvar Vrat katha) का दिन था। रानी की बहन उस समय ध्यानमग्न होकर पूजा कर रही थी। दासी ने रानी की बहन से कहा-“हे रानी! मुझे आपके पास आपकी बहन ने भेजा है। मुझे पांच सेर बेझर दे दो।” दासी ने अपनी बात अनेक बार कही, परन्तु रानी की बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया क्योंकि वह उस समय बृहस्पतिवार की कथा सुन रही थी।
रानी की बहन से जब दासी को कोई अपेक्षित उत्तर नहीं मिला तो वह अति दुःखी हुई। उसे क्रोध भी बहुत आया। लौटकर वह रानी से बोली- “हे रानी! आपकी बहन बहुत धनी स्त्री है. परन्तु वह अति घमण्डी भी है। वह छोटे लोगों से बात भी नहीं करती।
पांच सेर बेझर देने के लिये मैंने उससे बहुत कहा, परन्तु उसने कोई उत्तर नहीं दिया। इस प्रकार मुझे निराश एवं खाली हाथ लौटना पड़ा।” रानी बोली- “हे दासी! इसमें मेरी बहन का किसी प्रकार को कोई दोष नहीं है। जब बुरे दिन आते हैं, तब कोई सहारा नहीं देता। अपने पराये हो जाते हैं। अच्छे-बुरे का ज्ञान विपत्ति में ही होता है। जो ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा। यह सब हमारे भाग्य का दोष है।”
उधर पूजा समाप्त होने के पश्चात् रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी. परन्तु मैंने उसे कोई उत्तर नहीं दिया, इससे वह बहुत दुखी हुई होगी। कथा सुनकर तथा विष्णु भगवान् का प्रसाद ग्रहण कर वह अपनी बहन के घर गई तथा बोली-“हे बहन! मैं बृहस्पतिवार का व्रत (Guruvar Vrat katha) कर रही थी।
तुम्हारी दासी आई, परन्तु कथा समाप्त होने से पूर्व न उठते हैं और बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली। बताओ, दासी किस कार्य से मेरे पास गई थी?” रानी बोली- “बहन! हमारे घर अनाज नहीं था तथा
राजा परदेस गये हुए हैं, वैसे तुमसे कोई बात छिपी नहीं है। इस कारण मैंने दासी को तुम्हारे पास पांच सेर बेझर लेने के लिए भेजा था।”
इस पर रानी की बहन बोली-“हे बहन! बृहस्पति (Guruvar Vrat ka) भगवान् सबको मनोवांछित फल देते हैं। देखो, शायद तुम्हारे घर के किसी कोने में अनाज रखा हो।” यह सुनकर रानी की बहन की बातों से विस्मित दासी घर के अन्दर गई तो वहां एक घड़ा बेझर का भरा मिला गया।
उसे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उसके अनुसार घर का एक-एक बर्तन अन्न से खाली था। उसने बाहर आकर रानी को सारा वृत्तान्त सुनाया। दासी अपनी रानी से कहने लगी- “हे रानी! देखो वैसे भी हमको जब अन्न नहीं मिलता तो वह भी व्रत समान (Guruvar Vrat katha) ही है। अगर इनसे व्रत की विधि (Guruvar Vrat katha) तथा कथा पूछ ली जाए तो बृहस्पतिवार का व्रत हम भी कर लिया करेंगे।”
और फिर दासी के कहने पर रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत, पूजन विधि एवं नियमों के बारे में विस्तार से पूछा। उन्होंने बताया- “जो बृहस्पतिवार के व्रत (Guruvar Vrat katha) में चने की दाल और मुनक्कों से विष्णु भगवान् का केले की जड़ में पूजन कर दीपक जलाता है।
पीला भोजन करता है, पीले वस्त्र धारण करता है तथा प्रेमपूर्वक बृहस्पति भगवान् की कथा (Guruvar Vrat katha) सुनता है तो इस प्रकार करने से गुरु भगवान् उस भक्त से प्रसन्न होते हैं। धन, अन्न, पुत्र देते हैं। मनोवांछित मनोकामना पूर्ण करते हैं।” फिर व्रत एवं पूजन की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर लौट गई।
तत्पश्चात् रानी और दासी दोनों ने निश्चय किया कि बृहस्पति देव भगवान् का व्रत एवं पूजन (Guruvar Vrat katha) जरूर करेंगे। सात दिन पश्चात् जब बृहस्पतिवार आया तो दोनों व्रत किया। घुड़साल में जाकर चना और गुड़ बीन लाई और उसकी दाल बनाकर केले की जड़ में विष्णु भगवान् का पूजन किया। अब पीला भोजन कहां से आए?
यह सोचकर दोनों बड़ी दुखी हुई, परन्तु उन्होंने व्रत किया था. इसलिए बृहस्पतिदेव भगवान् उनसे प्रसन्न थे। एक साधारण व्यक्ति के रूप में वे दो थालों में सुन्दर पीला भोजन लेकर आए और दासी को देकर बोले-“हे दासी! यह भोजन तुम्हारे और रानी के लिए है तुम दोनों ही इसे ग्रहण करना।” दासी भोजन पाकर अति प्रसन्न हुई और रानी से बोली-“हे रानी जी, भोजन कर लो।
रानी को भोजन के विषय में कुछ पता नहीं था. इसलिए वह दासी से बोली- “जा तू ही भोजन कर क्योंकि तू व्यर्थ में ही हमारी हंसी उड़ाती है।” दासी बोली-“हे रानी. एक व्यक्ति इसीलिये भोजन दे गया है।” रानी बोली- “वह भोजन तेरे ही लिए दे गया है, इसीलिये तू ही भोजन कर।
दासी ने कहा-“हे रानी, वह व्यक्ति हम दोनों के लिए ही वो थालों में भोजन देकर गया है। अतः मैं और आप दोनों ही साथ-साथ भोजन करेंगी।” फिर दोनों ने गुरु भगवान् को धन्यवाद एवं नमस्कार कर भोजन प्रारम्भ किया।
उसके बाद से दोनों प्रत्येक बृहस्पतिवार को गुरु भगवान् का व्रत (Guruvar Vrat katha) और पूजन करने लगीं। बृहस्पति भगवान् की कृपा से उन दोनों की भोजन एवं धन की कमी दूर हो गई. परन्तु रानी फिर पुनः पहली प्रकार से आलस्य करने लगी।
तब दासी ने कहा- “हे रानी! आप पहले भी इसी प्रकार आलस्य करती थी. आपको धन सम्भालने एवं दान देने में कष्ट होता था, इसी कारण सभी धन नष्ट हो गया और हमारी ऐसी दुर्दशा हो गई।
अब गुरु भगवान् की कृपा से धन मिला है तो आपको फिर आलस्य हो रहा है। बड़े कष्टों के बाद आपने यह धन पाया है। इसलिए आपको दान-पुण्य करना चाहिए. भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, ब्राह्मणों को दान दो, प्याऊ लगवाओ,
कुआं-तालाब-बावड़ी आदि का निर्माण कराओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह करवाओ, मन्दिर- पाठशाला बनवाकर दान दो, धन को शुभ कार्यों में खर्च करो, जिससे आपके कुल का सम्मान बढ़े तथा आपको स्वर्ग प्राप्त हो एवं आपके पितृ प्रसन्न हो।
दासी की बात मानकर रानी ने इसी प्रकार के सदकर्म करने प्रारम्भ किए। इस प्रकार करने से उसका काफी यश फैलने लगा।
कुछ दिनों बाद एक दिन रानी और दासी आपस में विचार करने लगीं कि न जाने राजा किसी दशा में होंगे, उनकी काई खोज खबर नहीं है। रानी राजा की खबर न पाकर उदास रहने लगी। गुरु भगवान् (Guruvar Vrat katha) से उन्होंने प्रार्थना की और भगवान् ने रात्रि में राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा-“हे राजा उठ! तेरी रानी तुझको याद करती है। अब अपने देश लौट जा।” राजा प्रातः काल उठा। वह सोचने लगा कि मैं किस प्रकार रानी के पास खाली हाथ जाऊंगा।
मेरे पास तो कुछ भी नहीं, स्त्री जाति खाने और पहनने की ही साथी होती है। पर प्रभु की आज्ञा मानकर वह अपने नगर चलने को तैयार हुआ।
परदेस में राजा बहुत दुःखी रहने लगा। प्रतिदिन जंगल में लकड़ी बीनकर लाता और उसे शहर में बेचकर अपने दुःखी जीवन को बड़ी कठिनाई से व्यतीत करता था। एक दिन राजा दुःखी होकर अपने पुराने दिनों को याद करके रोने लगा। उस जंगल में बृहस्पतिदेव एक साधु का रूप धर कर आए और राजा से बोले- “हे लकड़हारे। तुम इस बियावान जंगल में किस चिन्ता में बैठे हो. मुझे बतलाओ।
यह सुनकर राजा की आंखों में आंसू भर आये और वह साधु को प्रणाम कर बोला- “हे प्रभो! आप सब कुछ जानने वाले हैं।” इतना कहकर राजा ने साधु को अपनी समस्त व्यथा सुना दी। तब साधु रूप में गुरु भगवान् राजा से बोले- “हे राजन्। तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पतिवार के दिन बृहस्पति देव का अपमान किया था जिसके कारण तुम्हारी यह दुर्दशा हुई।
अब तुम किसी प्रकार की चिन्ता मत करो, भगवान् तुम्हें पहले से अधिक धन प्रदान करेंगे। देखो, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पतिवार का व्रत प्रारम्भ कर दिया है। अब तुम भी बृहस्पतिवार का व्रत (Guruvar Vrat katha) करके चने की दाल व गुड़ जल के लोटे में डालकर केले का पूजन करो। फिर कथा कहो या सुनो! भगवान् तुम्हारी सभी इच्छाओं की पूर्ति करेंगे।”
साधु के वचन सुनकर राजा बोला “हे प्रभो! मुझे लकड़ी बेचने के पश्चात् इतना धन भी नहीं बचता कि भोजन करने के उपरान्त कुछ भी बचा सकूं। मैंने रात्रि में अपनी रानी को व्याकुल एवं व्यथित देखा है। मेरे पास कोई साधन नहीं जिससे उसका समाचार भी जान सकूं।
इसके अतिरिक्त मैं बृहस्पतिदेव की कथा (Guruvar Vrat katha) भी नहीं जानता हूं जिसे कह या सुनकर मैं व्रत धारण (Guruvar Vrat katha) कर भगवान् बृहस्पति का पूजन कर सकूं।”
साधु ने कहा- “हे राजा! तुम किसी बात की चिन्ता न करो। बृहस्पतिवार के दिन तुम नित्य की भांति लकड़ियां लेकर शहर में जाओ। तुम्हें रोज से दोगुना धन प्राप्त होगा। जिससे तुम भलीभांति भोजन कर लोगे तथा गुड़ एवं चने का प्रसाद खरीदकर बृहस्पतिदेव की पूजा भी कर सकते हो।” बृहस्पतिवार की कहानी (Guruvar Vrat katha) इस प्रकार है –
वृहस्पतिवार व्रत कथा(Guruvar Vrat katha)
प्राचीन समय में एक बहुत ही निर्धन ब्राह्मण था । उसके कोई सन्तान नहीं थी। ब्राह्मण नित्य पूजा-पाठ करता, वह स्वभाव से दयालु तथा धार्मिक विचारों वाला व्यक्ति था। परन्तु उसकी पत्नी बहुत मलिनता के साथ रहती थी।
वह न तो स्नान करती थी और न ठीक से कार्य करती। अपनी पत्नी की ऐसी आदत के कारण ब्राह्मण देवता बहुत दुःखी रहते थे। वह अपनी पत्नी को बहुत समझाते, किन्तु उसका कोई परिणाम न निकलता।
भगवान् की कृपा से ब्राह्मण की स्त्री के कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या ब्राह्मण के घर में बड़ी होने लगी। वह बालिका प्रातःकाल ही स्नान करके भगवान् विष्णु का जप (Guruvar Vrat katha) करती। बृहस्पतिवार का व्रत (Guruvar Vrat katha) भी करने लगी।
पूजा-पाठ समाप्त कर पाठशाला जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरकर ले जाती और पाठशाला जाने के रास्ते में डालती जाती। भगवान् बृहस्पतिदेव की कृपा से वही जी स्वर्ण के हो जाते तो लौटते समय उनको बीनकर घर ले आती। | एक दिन वह बालिका सूप में उन सोने के जौ को फटककर साफ कर रही थी, तभी उसकी मां ने उसे देख लिया और कहा-“हे बेटी! सोने के जौ को फटकने के लिए सूप भी तो सोने का ही होना चाहिए।
दूसरे दिन बृहस्पतिवार था। कन्या ने व्रत रखा (Guruvar Vrat katha) और भगवान् बृहस्पति से प्रार्थना करके कहा- “हे प्रभो! यदि मैंने सच्चे मन से श्रद्धापूर्वक आपका पूजन एवं व्रत (Guruvar Vrat katha) किया हो तो कृपया मुझे सोने का सूप दे दो।”
बृहस्पति देव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। नित्य की भांति वह कन्या जौ फैलाती हुई पाठशाला चली गई। पाठशाला से लौटकर जब वह जौ बीन रही थी तो बृहस्पति भगवान् की कृपा से उसे सोने का सूप प्राप्त हुआ। उस सोने के सूप को वह घर ले आई और उससे जौ साफ करने लगी, परन्तु उसकी मां का आचरण वैसा ही रहा।
एक दिन वह कन्या सोने के सूप में जी साफ कर रही थी। उसी समय अचानक उस नगर का राजकुमार वहां से होकर निकला। कन्या के रूप एवं कार्य को देखकर राजकुमार कन्या पर मोहित हो गया। राजमहल लौटकर राजकुमार अन्न और जल त्यागकर उदास होकर लेट गया।
राजा को जब अपने पुत्र द्वारा अन्न-जल त्यागने का समाचार ज्ञात हुआ तो अपने मन्त्रियों के साथ वह राजकुमार के पास गए और बोले-“हे बेटा! तुम्हें किस बात का दुःख है?किसी ने तुम्हारा अपमान किया है अथवा कोई और कारण है, मुझे बताओ, मैं वही करूंगा जिससे तुम प्रसन्न हो जाओ।
राजकुमार ने अपने पिता की बातें सुनीं तो वह बोला- “आपकी कृपा से मुझे किसी प्रकार का कष्ट नहीं है, सिकी ने मेरा अपमान भी नहीं किया है, परन्तु मैं उस कन्या के साथ विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सूप में जौ फटक रही थी।
यह सुनकर राजा आश्चर्य में पड़ गया और बोला- “हे राजकुमार ! इस तरह की कन्या का पता तुम लगाओ। मैं तुम्हारा विवाह उसके साथ अवश्य ही करवा दूंगा।” तब राजकुमार ने प्रसन्न होकर राजा को उस ब्राह्मण कन्या के घर का पता बताया। राजा के आदेश पर मंत्री उस कन्या के घर गया और राजा का आदेश ब्राह्मण को कह सुनाया। कुछ ही दिन बाद ब्राह्मण कन्या का विवाह राजकुमार के साथ हो गया।
घर से कन्या के विदा होते ही उस ब्राह्मण के घर में पहले की ही तरह निर्धनता वास करने लगी। अब भोजन के लिए अनाज भी बड़ी मुश्किल से मिलता था। एक दिन दुःखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी बेटी से मिलने गए। बेटी पिता की ऐसी अवस्था को |
देखकर अत्यंत दु:खी हुई और उसने अपनी मां का समाचार पूछा। ब्राह्मण ने पुत्री को सभी हाल कह सुनाया। पुत्री ने अपने पिता को बहुत सा धन देकर विदा कर दिया। इस प्रकार ब्राह्मण का कुछ समय सुखपूर्वक व्यतीत हुआ। लेकिन धन समाप्त होने के बाद स्थिति पूर्ववत् हो गई।
ब्राह्मण फिर अपनी पुत्री के यहां गया और उससे सभी हाल कह सुनाया। पुत्री बोली-“हे पिताजी! आप अपने साथ माताजी को यहां लिवा लाओ। मैं उन्हें वह विधि बता दूंगी जिससे दरिद्रता दूर हो जाएं।”
ब्राह्मण देवता अपनी पत्नी को साथ लेकर राजमहल अपनी पुत्री के पास पहुंचे तो पुत्री अपनी मां को समझाने लगी- “हे मां! तुम सुबह उठकर सर्वप्रथम स्नानादि करके भगवान् विष्णु का पूजन(Guruvar Vrat katha) किया करो तो सब निर्धनता दूर हो जाएगी।” परन्तु उसकी मां ने उसकी एक न मानी। वह सुबह उठकर सर्वप्रथम अपनी पुत्री का बचा झूठन खा लेती थी।
एक दिन उसकी बेटी को अपनी मां पर बहुत गुस्सा आया। उसने एक रात एक कोठरी से सारा सामान निकालकर अपनी मां को उसमें बन्द कर दिया। प्रातः कोठरी से अपनी मां को निकालकर तथा स्नानादि कराके पूजा-पाठ करवाया तो उसी मां की बुद्धि ठीक हो गई।
इसके बाद वह प्रतिदिन पूजा-पाठ करती और प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत भी रखने लगी। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मां भी अत्यन्त धनवान तथा पुत्रवती हो गई और बृहस्पति देवता (Guruvar Vrat katha) की कृपा से वृद्धावस्था में मृत्यु को प्राप्त कर स्वर्ग को गई। वह ब्राह्मण भी सुखपूर्वक इस लोक का सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुआ। इस प्रकार कहानी कहकर साधु देवता वहां से अन्तर्ध्यान हो गए।
धीरे-धीरे समय बीत गया तथा बृहस्पतिवार (Guruvar Vrat katha) का दिन आ गया। लकड़हारा रूपी राजा जंगल से लकड़ी काटकर किसी शहर में बेचने गया। आज उसे और दिनों से अधिक धन मिला। राजा ने चना, गुड़ आदि लाकर भगवान् विष्णु का पूजन किया तथा बृहस्पतिवार का व्रत किया।
उस दिन से उसके सभी कष्ट दूर हो गये, परन्तु अगले बृहस्पतिवार को वह व्रत करना भूल गया। इस कारण बृहस्पति भगवान् उससे रुष्ट हो गए। उस दिन उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा अपने समस्त राज्य में घोषणा करवा दी कि कोई भी मनुष्य अपने घर में भोजन न बनाए और आग भी न जलाए। सब लोग मेरे यहां भोजन करने आएं। इस आज्ञा को जो नहीं मानेगा, उसको सूली पर लटका दिया जायेगा।
राजा की आज्ञानुसार राज्य के सभी निवासी राजा के भोज में सम्मिलित होने गये, परन्तु लकड़हारा कुछ विलम्ब से पहुंचा, इसलिए राजा उसको भोजन कराने अपने साथ महल में ले गए। जब राजा लकड़हारे को भोजन करा रहे थे तो रानी की दृष्टि उस खूंटी पर पड़ी जिस पर उसका नौलखा हार टंगा हुआ था।
उसे हार खूंटी पर लटका नहीं दिखाई दिया। रानी को निश्चय हो गया कि मेरा हार इस लकड़हारे ने ही चुरा लिया है। उसी समय रानी की जिद पर राजा ने सैनिक बुलवाकर लकड़हारे को जेल में डलवा दिया।
जेलखाने में बन्द वह लकड़हारा बहुत दुःखी होकर विचार करने लगा कि न जाने कौन-से पूर्वजन्म के कुकर्म से मुझे यह दुःख प्राप्त हुआ है। जेल में बन्द लकड़हारा भगवान् बृहस्पति को याद करने लगा। तत्काल बृहस्पतिदेव (Guruvar Vrat katha) साधु के रूप में प्रगट हो गए और उसकी दशा देखकर कहने लगे-“अरे मूर्ख! तू बृहस्पतिवार को बृहस्पति देव की कथा एवं व्रत करना भूल गया, इसी कारण तुझे दुःख प्राप्त हुआ है।
अब किसी प्रकार की चिन्ता मत कर। बृहस्पतिवार (Guruvar Vrat katha) के दिन जेलखाने के दरवाजे पर तुझे चार पैसे पड़े मिलेंगे, तू उन पैसों से प्रसाद मंगाना, भगवान् बृहस्पति का पूजन एवं कथा कहना। कथा का प्रसाद स्वयं भी ग्रहण करना तथा दूसरों को भी खिलाना। इस प्रकार करने से तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे।”
अगले बृहस्पतिवार राजा को जेल के द्वार पर चार पैसे मिले। राजा ने पूजा का सामान मंगवाकर कथा (Guruvar Vrat katha) कही और प्रसाद बांटा।
उसी रात बृहस्पतिदेव (Guruvar Vrat katha) ने उस नगर के राजा को सपने में दर्शन देकर कहा-“हे राजा! तूने जिस आदमी को जेलखाने में बन्द कर रखा है, वह निर्दोष है।
वह राजा है, उसे छोड़ दे। रानी का नौलखा हार उसी खूंटी पर टंगा हुआ है। अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं तेरे को नष्ट कर दूंगा।” राजा सुबह उठा और खूंटी पर हार टंगा देखकर लकड़हारे को बुलाकर उससे क्षमा याचना की तथा राजा के योग्य सुन्दर वस्त्र आभूषण भेंट कर उसे विदा किया।
बृहस्पतिदवे की आज्ञानुसार राजा अपने नगर को चल दिया। जब वह नगर के निकट पहुंचा तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। वहां पहले से अधिक तालाब, बाग और कुएं तथा बहुत-सी धर्मशालाएं, मन्दिर आदि बने हुए थे।
राजा ने जब नगरवासियों से पूछा कि यह बाग, तालाब, धर्मशालाएं एवं कुएं किसके द्वारा बनवाये गये हैं, तब नगर के सब लोग कहने लगे कि यह सब रानी और दासी द्वारा बनवाए गए हैं। राजा को बहुत आश्चर्य हुआ, परन्तु क्रोध भी बहुत आया ।
जब रानी ने यह खबर सुनी कि राजा आ रहे हैं तो उसने दासी से कहा- “हे दासी! देख, राजा हमे अति दीन अवस्था में छोड़ गए थे। वह हमारी ऐसी हालत देखकर कहीं द्वार पर से ही न लौट जाएं, इसलिए तू द्वार पर खड़ी हो जा।” रानी की आज्ञानुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो गई।
जब राजा आए तो उन्हें अपने साथ महल में लिवा लाई । तब राजा ने क्रोध करके अपनी तलवार निकाली तथा रानी से पूछा- “बताओ इतना धन तुम्हें कैसे और किसी प्रकार प्राप्त हुआ है।” तब रानी ने बताया कि हमें हय सब धन बृहस्पतिदेव के व्रत (Guruvar Vrat katha) के प्रभाव से प्राप्त हुआ है।
अब राजा ने निश्चय किया कि सात दिन बाद तो सभी बृहस्पतदेव का (Guruvar Vrat katha) पूजन करते हैं, परन्तु मैं प्रतिदिन दिन में तीन बार कथा कहा करूंगा तथा नित्य व्रत किया करूंगा। अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बंधी रहती तथा दिन में तीन बार वह कथा कहता।
ऐसे ही एक दिन राजा ने विचार किया कि चलो अपनी बहन के यहां हो आऊं। ऐसा निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार होकर अपनी बहन के यहां चल दिया। मार्ग में उसने देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लिए जा रहे हैं।
उन्हें रोककर वह कहने लगा-“अरे भाइयों! कुछ देर मेरी बृहस्पति की कथा (Guruvar Vrat katha)सुन लो।” वे बोले, “लो हमारा तो आदमी मर गया है, इसका अपनी कथा की पड़ी है।” परन्तु कुछ आदमी बोले-“अच्छा कहो, हम तुम्हारी कथा (Guruvar Vrat katha) भी सुनेंगे।
राजा ने दाल निकाली और कथा कहनी शुरू कर दी। जब कथा आधी हो गई तो मुर्दा हिलने लगा और जब कथा समाप्त हुई तो “राम-राम” करके वह मुर्दा उठ बैठा।
राजा आगे चला। उसे चलते-चलते शाम हो गई। आगे मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला। राजा उससे बोला- “अरे भइया! तुम मेरी बृहस्पतिवार की कथा (Guruvar Vrat katha) सुन लो।” किसान बोला-“जब तक तेरी कथा सुनूंगा, तब तक चार हरैया जोत लूंगा।
जाओ भइया, अपनी कथा किसी और को सुनाना।” राजा आगे चलने लगा। राजा के हटते ही किसान के बैल पछाड़ खाकर गिर गये और किसान के पेट में बहुत तेज दर्द होने लगा। उसी समय किसान की मां रोटी लेकर आई। उसने जब यह देखा तो अपने पुत्र से सारा हाल पूछा। बेटे ने सारा हाल बता दिया।
किसान की मां दौड़ी-दौड़ी घोड़े पर सवार राजा के पास गई और उससे बोली-“मैं तेरी कथा सुनूंगी, तू अपनी कथा (Guruvar Vrat katha) मेरे खेत पर ही चलकर कहना।” राजा ने लौटकर किसान के खेत पर जाकर कथा कही, जिसे सुनते ही बैल खड़े हो गए तथा किसान के पेट का दर्द भी बन्द हो गया।
और फिर राजा अपनी बहन के घर पहुंच गया। बहन ने भाई की खूब आवभगत की। दूसरे दिन सुबह राजा जागा तो उसने देखा कि सब लोग भोजन कर रहे हैं।
राजा ने अपनी बहन से जब पूछा कि ऐसा कोई मनुष्य है जिसने भोजन नहीं किया हो, और जो मेरी बृहस्पतिवार की कथा (Guruvar Vrat katha) का श्रवण कर ले तो बहन बोली-“हे भैया! यह देश ऐसा ही है। यहां के लोग पहले भोजन करते हैं, बाद में कोई अन्य काम करते हैं।
अगर पड़ोस में कोई हो तो देख आती हूं।” ऐसा कहकर बहन चली गई, परन्तु उसे कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसने भोजन न किया हो। वह एक कुम्हार के घर गई जिसका लड़का बीमार था। उसे यह भी पता चला कि उसके यहां तीन दिन से किसी ने भोजन नहीं किया है।
राजा की बहन ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से आग्रह किया तो, वह तैयार हो गया। राजा ने जाकर बृहस्पतिवार की कथा (Guruvar Vrat katha) कही जिसको सुनकर कुम्हार का लड़का ठीक हो गया। अब
तो राजा की हर और प्रशंसा होने लगी। कुछ दिन बाद एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा-“हे बहन! मैं अपने घर जाऊंगा, तुम भी तैयार हो जाओ।” राजा की बहन ने अपनी सास से अपने भाई के साथ जाने की आज्ञा मांगी।
सास बोली-“चली जा, परन्तु अपने लड़कों को यहीं छोड़ जाना क्योंकि तेरे भाई के कोई सन्तान नहीं होती है।” बहन ने भाई से कहा-“हे भइया, मैं तो चलूंगी, परन्तु कोई बालक नहीं जाएगा।
राजा ने कहा- “जब कोई बालक साथ नहीं चलेगा, तब तुम ही क्या करोगी?दुःखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया। राजा अपनी रानी से बोला- “हम निरवंशी हैं, हमारा मुंह देखने का भी धर्म नहीं है।” वह उदास होकर बिना भोजन किए शय्या पर लेट गया।
रानी बोली- “हे प्रभो! भगवान् बृहस्पति ने हमें सब कुछ दिया है, वे हमें सन्तान भी अवश्य देंगे।” उसी रात बृहस्पतिदेव (Guruvar Vrat katha) ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा-“हे राजा उठ! सभी सोच त्याग दे, तेरी रानी गर्भवती है।”
नवें महीने रानी के गर्भ से एक सुन्दर पुत्र रूपी रत्न पैदा हुआ। तब राजा बोला “हे रानी! स्त्री बिना भोजन के रह सकती है, परन्तु बिना कहे नहीं रह सकती। जब मेरी बहन आए तो तुम उससे कुछ मत कहना।” रानी ने ‘हां’ कर दी।
और जब राजा की बहन ने यह शुभ समाचार सुना तो वह अति प्रसन्न हुई तथा बधाई लेकर अपने भाई के यहां आई। तभी रानी ने कहा, “घोड़ा चढ़ाकर नहीं आई, गधा चढ़ी आई।” राजा की बहन बोली- “भाई! मैं इस प्रकार न कहती तो तुम्हें औलाद कैसे मिलती ?”
भगवान् बृहस्पति ऐसे ही हैं, जैसी जिसके मन में कामनाएं हैं, सभी को पूर्ण कर मनोवांछित फल देते हैं। जो श्रद्धापूर्वक बृहस्पतिवार का व्रत करता है एवं कथा पढ़ता है अथवा सुनता है और दूसरों को सुनाता है, बृहस्पतिदवे (Guruvar Vrat katha) उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
ॐ जय जगदीश हरे आरती
ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
जो ध्यावे फल पावे,
दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे,
सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी,
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ,
अपने शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥
ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥